ग़ज़ल - न तू ग़लत न मैं ग़लत (Ghazal - Na Tu Galat Na Mein Galat)
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तू आग थी मैं आब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
तू ज़िन्दगी मैं ख़्वाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
उधर भी आग थी लगी इधर भी जोश था चढ़ा,
नया नया शबाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
जो सुर्ख़ प्यार का निशाँ तिरी निगाह में रोज था,
मिरे लिये गुलाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
ख़मोश लब तिरे रहे हमेशा उस सवाल पर,
वही तिरा जवाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
ख़ुशी व ग़म का बाँटना मिरे लिए वो प्यार था,
तिरे लिए हिसाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
दिलों में गाँठ क्यूँ पड़ी ये आज तक नहीं पता,
वो वक़्त ही ख़राब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
अलग अलग है रास्ता अलग अलग हैं मंज़िलें,
कोई न हम-रिकाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
शाइर - विवेक अग्रवाल 'अवि'
सुर और संगीत - रणधीर सिंह
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